कलाकृतियां


कुमार सात्वत 

कला में मौलिक रचना करते हैं जैसा की आमतौर पर देखा गया है की बालकला की अपनी खूबियां हैं जो निरंतर बालकों को रचने में सहयोग करती हैं। लेकिन बाजारीकरण ने उनकी कला को बरवाद करने का पूरा प्रयास ही नहीं किया बल्कि योजनाबद्ध तरीके से निरंतर करता जा रहा है। 

जिसका मुख्य कारण महँगी स्टेशनरी की बिक्री मात्रा है।  अज्ञानतावश बालकों के माता पिता या शिक्षक भी वही गलतियां दुहराते जा रहे हैं। उनको कार्टून या चित्र की ऐसी पुस्तक या आर्ट बुक दे रहें जिसमें कार्टून के चित्र अंकित होते हैं उनमें रंग भरने के लिए दिया जाता जिससे बच्चों को एक आकार में बाँध दिया जाता है.जिससे वह उसी के इर्दगिर्द घूमता रहता है उसके स्वतंत्र प्रतिभा या उड़ान के पंख बचपन में ही काट दिए जाते हैं। 

 मैंने इन सबके लिए कागज रंग ब्रश पेन्सिल पेन पर्याप्त मात्रा में सुलभ किया हूँ जिसकी वजह से इनमे विद्यालय की महँगी आर्टबुक को मात्र भरने का दवाव नहीं रहता वल्कि स्वतन्त्र भाव से अपनी अपनी रचना करते हैं और उत्साहित रहते हैं। 

आईये बात करते हैं बाल कला और कलाकार की ?
आज समाज में अनेकों प्रकार की विकृतियां देखने में आ रही हैं जिसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं देख रहा हूँ ।उसी में शामिल हैं आज की हर लेबल की शिक्षा व्यवस्था ?
हम विचार करते हैं प्रारंभिक शिक्षा जिसमें विशेष रूप से कला की शिक्षा को लेकर बात करते हैं आज के दौर में शिक्षा का बाज़ारीकरण बहुत बड़ी समस्या है जबकि शिक्षा पद्धति वैज्ञानिक तरीक़े से शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उसकी मौलिकता पर ज़ोर देना चाहिए । लेकिन वह किन्हीं कारणों से कमज़ोर पड़ गया है हम देखते हैं आज बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो उन्हें महंगी महंगी अभ्यास पुस्तिकाएं पकड़ा दी जाती है इसका परिणाम यह होता है कि उसकी मौलिकता कुछ सधे हुए और निश्चित फार्मूले में बाँध दिया जाता है।
जिसका बहुत दुष्प्रभाव पड़ता है।

बाल कला, जिसे अंग्रेजी में "Children's Art" कहा जाता है
बच्चों द्वारा बनाई गई रचनात्मक अभिव्यक्तियों को संदर्भित करती है, जिसमें चित्रकला, रेखाचित्र, मूर्तिकला, हस्तशिल्प और अन्य रचनात्मक कार्य शामिल हैं। यह कला बच्चों की भावनाओं, विचारों, कल्पनाओं और उनके पर्यावरण के प्रति उनकी समझ को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। बाल कला न केवल बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ावा देती है, बल्कि उनके मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

बाल कला की विशेषताएं
1. **स्वतंत्र अभिव्यक्ति**: बच्चों की कला में आमतौर पर नियमों या तकनीकी बाधाओं का पालन नहीं होता। वे अपनी भावनाओं और विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करते हैं, जो उनकी कला को अनूठा और सहज बनाता है।
2. **प्रतीकात्मकता**: बच्चे अक्सर प्रतीकों (Symbols) के माध्यम से अपनी भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, एक बड़ा सूरज खुशी का प्रतीक हो सकता है, जबकि गहरे रंग डर या उदासी को दर्शा सकते हैं।
3. **रंगों का उपयोग**: बच्चे रंगों का उपयोग अपनी भावनाओं और कल्पनाओं को व्यक्त करने के लिए करते हैं। वे अक्सर चमकीले और जीवंत रंगों को पसंद करते हैं।
4. **अनुपात और परिप्रेक्ष्य की कमी**: बच्चों की कला में वास्तविक अनुपात या परिप्रेक्ष्य (Perspective) का अभाव हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक बच्चा अपने घर को अपने माता-पिता से बड़ा चित्रित कर सकता है, क्योंकि घर उसके लिए महत्वपूर्ण है।
5. **कहानी कहने का माध्यम**: बच्चों की कला अक्सर कहानियां कहती है। उनके चित्र उनके दैनिक जीवन, सपनों, या काल्पनिक दुनिया को दर्शाते हैं।

बाल कला का महत्व
1. **रचनात्मकता और कल्पनाशक्ति**: कला बच्चों की रचनात्मकता और कल्पनाशक्ति को बढ़ावा देती है। यह उन्हें नए विचारों को तलाशने और समस्याओं को रचनात्मक ढंग से हल करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
2. **भावनात्मक अभिव्यक्ति**: बच्चे अक्सर उन भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कला का उपयोग करते हैं, जिन्हें वे शब्दों में बयान नहीं कर पाते। यह उनके लिए एक सुरक्षित और गैर-मौखिक संचार का साधन है।
3. **संज्ञानात्मक विकास**: कला के माध्यम से बच्चे आकृतियों, रंगों, और पैटर्न को समझते हैं, जो उनके संज्ञानात्मक विकास में मदद करता है। यह उनकी ठीक मोटर कौशल (Fine Motor Skills) को भी बढ़ाता है।
4. **आत्मविश्वास और आत्मसम्मान**: जब बच्चों की कला की प्रशंसा की जाती है, तो यह उनके आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ाता है।
5. **सामाजिक और सांस्कृतिक समझ**: कला के माध्यम से बच्चे अपने पर्यावरण, संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को समझते हैं और उन्हें व्यक्त करते हैं।

बाल कला के प्रकार
1. **चित्रकला और रेखाचित्र**: बच्चे अक्सर पेंसिल, क्रेयॉन, मार्कर, या पानी के रंगों का उपयोग करके चित्र बनाते हैं। यह उनकी सबसे आम रचनात्मक अभिव्यक्ति है।
2. **मूर्तिकला**: मिट्टी, प्लास्टिक, या अन्य सामग्रियों से बनी मूर्तियां बच्चों की त्रि-आयामी रचनात्मकता को दर्शाती हैं।
3. **हस्तशिल्प**: कागज, कपड़े, या पुनर्चक्रित सामग्रियों से बनाए गए हस्तशिल्प बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ावा देते हैं।
4. **कोलाज**: विभिन्न सामग्रियों, जैसे कागज, कपड़ा, या प्राकृतिक वस्तुओं को मिलाकर बनाए गए कोलाज बच्चों की रचनात्मकता का एक अनूठा रूप हैं।
5. **डिजिटल कला**: आधुनिक युग में, बच्चे टैबलेट या कंप्यूटर पर डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके भी कला बना रहे हैं।

बाल कला का विकासात्मक चरण
बच्चों की कला उनके आयु और विकास के चरण के अनुसार बदलती है। मनोवैज्ञानिक विक्टर लोवेनफेल्ड (Viktor Lowenfeld) ने बच्चों की कला के विकास को निम्नलिखित चरणों में वर्गीकृत किया है:
1. **स्क्रिबलिंग चरण (2-4 वर्ष)**: इस चरण में बच्चे बेतरतीब रेखाएं और आकृतियां बनाते हैं। यह उनकी मोटर कौशल और हाथ-आंख समन्वय को दर्शाता है।
2. **प्री-स्कीमैटिक चरण (4-7 वर्ष)**: बच्चे प्रतीकों और सरल आकृतियों, जैसे सूरज, घर, या मानव आकृतियों को बनाना शुरू करते हैं।
3. **स्कीमैटिक चरण (7-9 वर्ष)**: इस चरण में बच्चे अपनी कला में अधिक विस्तार और दोहराव वाले पैटर्न (Schemas) का उपयोग करते हैं। उनकी कला अधिक संगठित और यथार्थवादी होती है।
4. **यथार्थवादी चरण (9-11 वर्ष)**: बच्चे अपनी कला में अधिक यथार्थवादी और अनुपातिक चित्रण करने की कोशिश करते हैं।
5. **छद्म-प्राकृतिक चरण (11-13 वर्ष)**: इस चरण में बच्चे अपनी कला में गहराई, परिप्रेक्ष्य, और भावनात्मक अभिव्यक्ति को शामिल करते हैं।

बाल कला को प्रोत्साहित करने के तरीके
1. **सुरक्षित और रचनात्मक वातावरण**: बच्चों को विभिन्न सामग्रियों और उपकरणों के साथ प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें।
2. **प्रशंसा और प्रोत्साहन**: बच्चों की कला की प्रशंसा करें, लेकिन उनकी रचनात्मकता को नियंत्रित करने से बचें। उन्हें अपनी शैली विकसित करने की स्वतंत्रता दें।
3. **कला गतिविधियों का आयोजन**: स्कूलों और घरों में कला कार्यशालाएं, प्रदर्शनियां, और रचनात्मक गतिविधियां आयोजित करें।
4. **प्रकृति और संस्कृति से प्रेरणा**: बच्चों को प्रकृति, कहानियों, और सांस्कृतिक गतिविधियों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करें।
5. **डिजिटल उपकरणों का उपयोग**: आधुनिक तकनीक, जैसे ड्रॉइंग ऐप्स, बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।

बाल कला का मनोवैज्ञानिक और शैक्षिक महत्व
- **मनोवैज्ञानिक विश्लेषण**: बच्चों की कला का उपयोग मनोवैज्ञानिक और शिक्षक उनके मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्थिति, और विकासात्मक स्तर को समझने के लिए करते हैं।
- **शैक्षिक उपकरण**: कला को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने से बच्चों का समग्र विकास होता है। यह उन्हें गणित, विज्ञान, और भाषा जैसे विषयों को रचनात्मक रूप से समझने में मदद करता है।
- **सामाजिक एकता**: समूह कला परियोजनाएं बच्चों में सहयोग, संचार, और सामाजिक कौशल को बढ़ावा देती हैं।

निष्कर्ष
बाल कला बच्चों की रचनात्मकता, भावनाओं, और विकास का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह न केवल उनकी कल्पनाशक्ति को उड़ान देता है, बल्कि उनके व्यक्तित्व को भी समृद्ध करता है। माता-पिता, शिक्षकों, और समाज को बच्चों की कला को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि वे अपनी भावनाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें और एक रचनात्मक भविष्य की ओर अग्रसर हो सकें।



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21 December 2023